Poem about stress on the students due to indian education system
मैंने पढ़ना छोड़ दिया है
~ प्रशांत जोशी
मुझसे ज्यादा नतीजों की फ़िक्र सबको लगी रहती है
डर था की कही माँ बाप की कसौटी पर न उतर पाऊ मैं
अंको की जंजीरो ने गला घोट दिए है
मैंने पढ़ना छोड़ दिए है
साहित्य पढ़ने से अब मन घबराता है
इंजीनियरिंग व् डॉक्टरी का भूत दिन रात सताता है
बच्चो पर डाला जा रहा लोड |
मुझसे ज्यादा नतीजों की फ़िक्र सबको लगी रहती है
मेरी हालत देख छोटी भी सहमी सहमी ही रहती है
किताबो के बोझ ने बचपन के कद को घटा दिया
काम अंको ने चुप सिरहाने रोना सीखा दिया
बच्चो के वजन से ज्यादा उनके बस्ते का वजन होने चला है |
डर था की कही माँ बाप की कसौटी पर न उतर पाऊ मैं
दिमाग ने जोर दिए क्यों न झूल जाऊ मैं?
बस्ते ने ही तो मेरा कान्धा झुकाया था
मौत का फंदा मुझे अधिक रास आया था
पढाई की टेंशन से सुसाइड कर रहे विद्यार्थी
तीसरी चिट्ठी है ये बाकी दो आंसुओ से भीग गयी थी
अंतर मन की चीखो की आवाज़ अधिकांश बढ़ गयी थी
इस शिक्षा तंत्र से हार गया मैं आज
बस्ते ने झुका दिया मेरा कांधा आज
इच्छाओ के मुँह पे कपडा ठूस दम तोड़ दिया है
मैंने पढ़ना छोड़ दिया है
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